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तयो॒रिदम॑व॒च्छव॑स्ति॒ग्मा दि॒द्युन्म॒घोनोः॑। प्रति॒ द्रुणा॒ गभ॑स्त्यो॒र्गवां॑ वृत्र॒घ्न एष॑ते ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tayor id amavac chavas tigmā didyun maghonoḥ | prati druṇā gabhastyor gavāṁ vṛtraghna eṣate ||

पद पाठ

तयोः॑। इत्। अम॑ऽवत्। शवः॑। ति॒ग्मा। दि॒द्युत्। म॒घोनोः॑। प्रति॑। द्रुणा॑। गभ॑स्त्योः। गवा॑म्। वृ॒त्र॒ऽघ्ने। आ। ई॒ष॒ते॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:86» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:32» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य्य (वृत्रघ्ने) मेघ के नाश करनेवाले के लिये (गवाम्) किरणों का (आ, ईषते) सब प्रकार नाश करता है और जो दोनों (द्रुणा) चलनेवाले वर्त्तमान हैं (तयोः, इत्) उन्हीं सेनापति और सेनाध्यक्ष और (मघोनोः) बहुत धन से युक्त (गभस्त्योः) भुजाओं के (अमवत्) गृह के सदृश (शवः) बलयुक्त (तिग्मा) तीव्र (दिद्युत्) बिजुली है, वैसे उसको आप लोग (प्रति) ग्रहण करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे राजपुरुषो ! जैसे सूर्य्य मेघ का नाश करके प्रजाओं का पालन करता है, वैसे ही आप लोग दुष्टों का नाश करके प्रजाओं की निरन्तर रक्षा कीजिये ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा सूर्य्यो वृत्रघ्ने गवामेषते यौ द्रुणा वर्त्तेते तयोरिन्मघोनोर्गभस्त्योरमवच्छवस्तिग्मा दिद्युद्वर्त्तते तथा तां यूयं प्रति गृह्णीत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तयोः) पूर्वोक्तयोः सेनापत्यध्यक्षयोः (इत्) एव (अमवत्) गृहवत् (शवः) बलम् (तिग्मा) तीव्रा (दिद्युत्) (मघोनोः) बहुधनयुक्तयोः (प्रति) (द्रुणा) गन्तारौ (गभस्त्योः) भुजयोः (गवाम्) किरणानाम् (वृत्रघ्ने) मेघहन्त्रे (आ) (ईषते) हिनस्ति ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे राजपुरुषा ! यथा सूर्य्यो मेघं हत्वा प्रजाः पालयति तथैव यूयं दुष्टान् हत्वा प्रजाः सततं रक्षत ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजपुरुषांनो! जसा सूर्य मेघाचा नाश करून प्रजेचे पालन करतो तसेच तुम्ही दुष्टांचा नाश करून प्रजेचे निरंतर रक्षण करा. ॥ ३ ॥